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Showing posts from September, 2017

दर्द

मेरी तलाश ख़त्म हुई, वो औरो को मिल गया, मुझे एक और नाकामी एक और दर्द मिल गया !!

बदनाम

मुझे तुम बदनाम ही रहने दो , जो छलक गया वो जाम ही रहने दो आती थी वो सबसे छुप कर मिलने जहाँ मेरी उस छत को अब सूनसान ही रहने दो । जरूरी नही की मुक़म्मल हो मुहब्बत सबकी , डायरी के पन्नो में छुपी उसे दास्ताँ ही रहने दो । हो चुकी है वो किसी और के घर आबरू अब जवानी के उन किस्सों को अब राज़ ही रहने दो । तुम बदल गए शायद यही ख्वाहिश थी तुम्हारी नए बस्ते में मुझे वो पुरानी किताब ही रहने दो । मुझे तुम गुमनाम ही रहने दो .....
ख़्वाबनामा-- तुमसे मिलना अब हकीकत नहीं  एक ख्वाब लगता हैं  ख्वाबों में अक्सर डेरा डाले रहना  तुम्हारी आदत में सुमार हो चला है  लोगों की सुनिसुनायी बातें को मान कर अक्सर चार बजे सोना भी सीखा  न ख़्वाब तुमसा आया  न तुम ख़्वाब में आई  कैसे मान लूँ  किस्मत एक ख़्वाब पे टिकी है D.s.bangari

अनबुझा ख़्याल

रिश्ते ऐसे हो गए हैं, इस दौर में। जो आवाज़ तुम न दो, तो बोलते वो भी नहीं।।

दो अलग ख़्याल

पहला सब मुझे ही कहते है की भूल जाओ उसे कोई उसे क्यूँ नहीं कहता की वो मेरी हो जाए.. दूसरा तुमसे रिश्ते मेरे सभी....शब्दों के हैं....!! तुमने सुना नही कभी...मैंने कहा नही कभी!!!

दूरी

बढ़ती गयी उनकी मनमर्जियाँ , फिर इक दिन ये हुआ की हम फिर से अजनबी बन गए"

इतवार-नामा

हफ़्ते भर में बिखर चुके जिस्म को, एक इतवार ही आता है समेटने को....!

व्यंग

हाँ!तो मैं सोच रहा था कि और महापुरषों की तरह,मैं भी लोगों के बीच ज्ञान चेपू। पर सबसे बडी विडम्बना ये थी कि टॉपिक क्या लिया जाय?तो दिमाग खपाते हुए ध्यान आया "धर्म"।         "धर्म"-किसी भी इंसानऔर शैतान को काबू करने का वह रास्ता जिसका कोई तोड़ नहीं है।" लिखने से पहले सोचा था।टॉपिक पर सिर्फ अच्छी बातें लिखूंगा।फ़िर ध्यान आया,धर्म पर सिर्फ अच्छी बातें कैसे की जा सकती है? इंसान हो या भगवान सबने धर्म के नाम पर बस अपना उल्लू सीधा किया है।बाकी अपने द्वारा किये गए कर्मों को सही साबित करने के लिए किसी ने 4-6 तो किसी ने300-400 श्लोक के रूप में ज्ञान पेल डाला। और इसी पेले हुए ज्ञान को रामायण,श्रीमद्भागवत गीता, कुरान,बाईबिल, गुरुग्रंथ आदि नामों से बराबर रूप में आज भी प्रकाशित किया जा रहा है। यही धर्म ग्रंथ हमें भगवान,अल्लाह,गॉड,गुरु आदि नामों से रूबरू कराते है।इन्हीं किताबों के अनुसार गॉड ......हमने जाना कि गॉड निराकार है,वो कभी न मरते है,न कभी जन्म लेते हैं,वो अजर-अमर है,उनकी कोई उम्र नहीं होती.......वगैरा-वगैरा।तोअगर इन किताबी बातों को सच माना जाए और मानना भी पड़ेगा कोई

अंतर्मन

--अंतर्मन--                                                                                   घनघोरअंधेरा छाये जब   कोई राह नज़र ना आये जब कोई तुमको फिर बहकाये जब इस बात पे थोड़ी देर तलक तुम आँखें अपनी बंद करना और अंतरमन की सुन लेना मुमकिन है हम-तुम झूठ कहें पर अंतरमन सच बोलेगा.......... जब लम्हा-लम्हा 'आरी' हो और ग़म खुशियों पे भारी हो दिल मुश्किल में जब पड़ जाये कोई तीर सोच की 'अड़' जाये तुम आँखें अपनी बंद करना और अंतरमन की सुन लेना मुमकिन है हम-तुम झूठ कहें पर अंतरमन सच बोलेगा........ जब सच-झूठ में फर्क ना हो जब गलत-सही में घिर जाओ तुम नज़र में अपनी गिर जाओ इस बात पे थोड़ी देर तलक तुम आँखें अपनी बंद करना और अंतरमन की सुन लेना मुमकिन है हम-तुम झूठ कहें पर अंतरमन सच बोलेगा........ ये जीवन एक छाया है दुख, दर्द, मुसीबत माया है दुनिया की भीड़ में खोने लगो तुम खुद से दूर होने लगो तुम आँखें अपनी बंद करना और अंतरमन की सुन लेना मुमकिन है हम तुम झूठ कहें पर अंतरमन सच बोलेगा..

काश

पहले लिखता हूं कागज़ पे,मसाईल अपने, और फिर सब्र के दरिया में बहा देता हूं।
--बचपन और बस्ता-- खिड़की के पास एक मासूम चेहरा हर रोज नजर आता है, कंधे अमूमन झुके हुए, आखों में चेहरे की तरह मासूमियत से भरे सपने। थका सा बदन, कुछ इस तरह एक बोझ के नीचे दबा हुआ पूरा जिस्म, जैसे मजदूर का बोझ, जो जी तोड़ मेहनत करके किसी तरह परिवार पाल रहा हो। इस उम्र में किस तरह लद के जा रहा है,बचपन पूछताज करने पर पता चला, ये बोझ आने वाले कल की तैयारी है। जो आज के बचपन पे लदी पड़ी है बोझ, अकांशा, और अरमानों का ये पिटारा, जिसे लोग बस्ता(स्कूल बैग) कहते है।       --D.s.bangari

---तारीफ-ए-हकीकत---

---तारीफ-ए-हकीकत--- तेरे चेहरे के दीदार से दिन बन  जाता है, तेरी जुल्फें सावन के बादलों की तरह, अपनी बौछारो से मुझे पूरा तर कर जाती है। मदहोश नज़रों की बात न करूँ, तो ये तेरे हुस्न की तौहीन होगी। तेज कटारी की तरह पूरे जिस्म को , कुछ इस कदर उधेड़तीं है  जैसे ईद का बकरा हो। ये सुर्ख होंठ,  जिनको अक्सर तुम चटक लाल रंग में रंगती हो, मेरे लिये रेगिस्तान में मरीचिका जैसा होता है। दिखता तो है पर, नसीब में नहीं। खैर! तेरी तारीफ में  जिस्म के कुछ बनावट को उकेरा है। वक़्त नसीब हुआ तो, तेरे हुस्न को शब्दों में इस कदर उकेरुँगा, जैसे शाहजहाँ ने ताजमहल। .... ..जो सदियों तक कोई ना कर पाये।             ---D.s.bangari

अनकहे-जज़्बात

--अनकहे-जज़्बात-- सुन! सुन रही है,ना। आज भी तेरे जैसा कोई और कहाँ ढूढ़ पाया हूँ? न तेरी जैसी बातें कोई करता है न ही कोई और बिन बातों के बेवजह, इतने तारीफों के पुल बाँध सकता है। हर छोटी-बड़ी बात पर दिखावटी और असल गुस्सा  कहाँ कोई इतने सटीक ढंग से कर पाता है? तेरा सानी और कोई नहीं शायद! हाँ! अब कुछ मिल रहे है।  पर, उनमें भी बेवफाई तेरी जैसी कहाँ।        ----D.s.bangari

ख़ामोशियाँ

ख़ामोशियां,  बेवजह नहीं होती...।  कुछ दर्द,  आवाज़ छीन लिया करते हैं...।

वहशीपन

रोज सहती है वो कोठे पर "हवस" के नश्तर, हम अगर "दरिंदें" ना होते, तो वो माँए होती…...

लिहाज-ए-जिंदगी

होंगे रूबरू दिल खोलकर हम,  बहुत दिन जी लिए हम  लिहाज़ करके
गरीबी- कविता लिख रहा था गरीबी पर... कलम ही बेचनी पड़ी अंत में...
जिंदगी-नामा कुछ ख्वाइशों का कत्ल करके मुस्कुरा दो जिंदगी खुद ब खुद बेहतर हो जायेगी
जी हजूरी न खोज ले तू भी कोई दूसरा तारीफ़ करने वाला। ये लफ्जों की गुलामी, अब हमसे न हो पाएगी ।
हालात-- शख्स दो अलग नहीं तलाशने पड़े मुझे, जो दुश्मन है मेरा वही दोस्त भी था !!
याद-- बहुत ज़ोर से हँसे थे हम ,बड़ी मुद्दतों के बाद, आज फ़िर कहा किसी ने, "मेरा ऐतबार कीजिये!"
----दिली-ख़्वाहिश---- "बताओ तो कैसे निकलता है,  जनाजा उनका,  वो लोग जो अंदर से मर जाते ,  है।।"
----अधजगा-ख़्याल--- मुझे तलाश है उन रास्तों कि, जहां से कोई गुज़रा न हो, सुना है,वीरानों मे अक्सर, जिंदगी मिल जाती है।
खुबसुरती के तो हर कोई आशिक होते हैँ " किसी को  खुबसुरत बनाकर इश्क किया जाय तो क्या बात है।।
-- यादों का पिटारा-- यों रात रात भर जगना  यों सुबुक-सुबुक के, हर उस बात को याद करना जो हमने साथ संजोये थे।  न जाने कितनी ही बातों को  कितनी बार तोड़ा मरोड़ा गया  था, अंततः हल उसका तुम होती थी,  मैं आज भी  रात-रात भर तुमको याद करके गुजारा करता हूँ, बस उन यादों में अब पहले सा सुकून और मिठास नहीं  कुछ तल्खियां, कुछ रंज,  और  तेरे छोड़ जाने का सबब ही बाकी रह गया है।।
मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, ग़ैरत, खुद्दारी, एक मुहब्बत की चादर को, कितने चूहे कुतर गए…!!
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तुमको सोचता हूँ, तो ख़ुद को वसूल कर लेता हूँ।।
°°°कभी-कभी°°° कभी ये वहम की, वो मेरा हैं सिर्फ मेरा। कभी ये डर की, वो मुझसे जुदा तो नहीं। कभी ये दुआ की , उसे मिल जाये सारे जहाँ की खुशियाँ। कभी ये ख़ौफ की, वो खुश मेरे बिना तो नहीं। कभी ये तम्मन्ना की, बस जाऊँ उसकी निगाह में। कभी ये डर की, उसकी आँखों को किसी ने देखा तो नहीं। कभी ये ख़्वाहिश की, जमाना करे तारिफ़ उसकी। कभी ये वहम की, वो किसी से मिला तो नहीं। कभी ये आरजू की, वो जो माँगे मिल जाये उसे। कभी ये सोच की उसने मेरे सिवा कुछ माँगा तो नहीं।।
इंतजार--- मुस्कुराती पलको पर चले आते है... आप क्या जानो कहाँ से गम आते है? हम तो आज भी उसी मोड़ पर खड़े है    जहाँ तुमने कहा था,       तुम ठहरो हम अभी आते है।
बंदगी-- ला!वापस दे दे मेरा दिल अब क्यूँ तेरे पास रहे? ऐसी भी क्या ज़रूरी मोहब्बत कि, मैं भी उदास रहूँ.. तू भी उदास रहे..!!
खामोशियाँ---- तू ज़ाहिर है लफ़्जों में मेरे.!!! और मैं गुमनाम हुं खामोशियों में तेरी..??
एक टीचर ऐसी भी-पार्ट-2   कहानी कहो या अफसाना। बस कुछ इसी तरह की एक टीचर की कहानी।हांलाकि ये लाइन कुछ इस तरह होती "कि इस तरह की है मेरी टीचर की कहानी" पर ये सिर्फ उनके हक मैं है। जिनको टीचर ने कम से कम एक साल तो पढ़ाया हो। वो कहते है न की-"बंदर की किस्मत और हल्दी की बरबादी"। बस कुछ इसी तरह की अपनी कहानी है जनाब।   खैर! उसे इस प्रसंग में,मैं कुछ शब्दों में सहजने की कोशिश करूँगा। पर अभी बात कुछ साल 2010-2011 की रही होगी।जहाँ की पहाड़ में आपको प्राकृतिक सुंदरता और खुबसूरत लड़कियाँ देखने को आम तौर मिल ही जाएगी।पर दूर-दूर तक उनको देखने या सुनने से आपको   कंगना रनौत वाली फीलिंग कभी नहीं आ सकती हैं।पर हल्द्वानी से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी एक लड़की "गीता रावत"।जिनकी नियुक्ति देश के भविष्य निर्माता अथार्त बच्चों के शिक्षक के रूप .....माफ़ी चाहूँगा,सिर्फ बच्चीयों के निर्माण के लिए।(गर्ल्सस्कूल में कार्यरत)     मुझे पूरी जानकारी तो नहीं,पर शायद यहाँ उनका पहला तबादला था। दिमाग़ से एकदम चतुर,चालक और आँखें ऐसी की हिरनी भी गच्चा खा जाए।बालों की हालत देखते हुए। मैंने और
एक टीचर ऐसा भी--- हमारे एक टीचर हुआ करते थे।नाम उनका बड़ा सही है- मोहन मिश्रा .....मैंटिलिटि में बिल्कुल कुंठित, कबाड़ा(कबाड़ शब्द के पीछे एक वजह है उनका मानना था कि अगर किसी के पेरेंट्स कॉलेज में होने वाले किसी भी मामले के खिलाफ किसी भी तरह की बत्तमीजी /आवाज उठाते है। तो उसका बदला उसके बच्चे से निकाल जाय ...ये किस तरह निकाला जाए इसकी भी एक ट्रिक थी हांलाकि ये कभी फिर विस्तार में बताऊँगा....)।हुआ यूं कि मुझे क्लास 5th से चस्का लगा।कविता,कहानी और हिंदी फिल्मों के गानों को याद करने का शौक। इस शौक के चलते मैंने अपनी कई सब्जेक्ट की कापियों के पीछे पेंसिल से कई बॉलीवुड और इंग्लिश सांग के बोल लिखे थे। अमूमन जैसे कि गवर्नमेंट स्कूल के हालत होते थे/है। कुछ उसी तरह मेरे भी स्कूल के हालात हुआ करते थे।(अब तो खैर और भी बत्तर है)। तो बात तो गोल-गोल न घुमाते हुए सीधे पॉइन्ट पे बात करे तो कॉपियां हफ्ते में एक बार चैक करने के लिए इकट्ठी हुई और मेरी उस इंग्लिश वाली कॉपी के पीछे भी एक बॉलीवुड सांग के अल्फाज लिखे थे।फिर क्या था.(जहाँ तक मैं याद करूँ,तो वो गाना था।"सूरज हुआ मध्म चाँद ...हाँ कुछ ऐसा ह
याद--- प्यार वालों के दीये काम कहाँ आते हैं आँख भीगेगी तो कमरे में उजाला होगा
यादनामा--- किसी की यादों में नही लिखता हूँ,,,, हाँ लिखता हूँ तो किसी की याद जरूर आती है।
ख़्याल-ए-हसरत सच की हालत किसी तवायफ सी है, तलबगार बहुत हैं तरफदार कोई नही.,.,!!
--मसला-ए-जिंदगी--- एक सी थकान है, सब दिनों के चेहरों पर..... जिंदगी बता मैं "इतवार" को पहचानूँ कैसे ?
---ख़्याल-ए-इश्क़--- यहां जान चली जाए,तो कोई बात नही उन्हें जो नींद न आये तो मसला हो जाये
आख़री साँस--- आँखों में उनकी धुंधला गई है मेरी तस्वीर,, मैंने जान लिया ये रिश्ता आखरी साँसे ले रहा है...
मन की मनमानियाँ और बेख़ौफ़ गुस्ताखियाँ.... और फिर ये शायरियाँ... उफ्फ़ ये मुहब्बत..... D.s.bangari
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--आस-- अरमानों का टूटना क्या होता है? सोचा है,कभी। ये जान कर सिहरन होने लगती है। कभी देखा है,कोई सपना वही सपना जिसको हकीकत तब्दील करने में नींदे हराम होती है। नीदें तो नीदें और न जाने कितना कुछ हराम होता है। सच कहूँ तो अरमानों का टूटना, बिखरना टूट के चकनाचूर हो जाना और फ़िर खुद में सिमट जाना ये एक आगाज़ है। उस सपने को देखने का जो बना है, सिर्फ हमारे लिए जिसमें न सिहरन होगी न ही टूटने, छूटने और फूटने का डर। .......दुर्गेश
एक अधूरे ख्वाब की, पूरी रात है.....मेरे पास... तुम हो ना हो, तुम्हे जीने का एहसास है.....मेरे पास.....!