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Showing posts from August, 2017
खुद की कही....... मन किसका कब कैसे किस तरह रियेक्ट ये कह तब तक मुश्किल जब तक आप सामने वाले के मूड को सही तरह न जानते हो क्यों कि अक्सर मैंने निजी जिंदगी में ये महसूस किया है की चीजी जैसी दिखती है वैसी होती नही है। कई इंसान इकलौती जिंदगी में दोहरी जिंदगी जीते है। जैसे की मैं खुद दोहरी जिंदगी जीता हूँ।ऐसा नहीं है कि ये दोहरी भूमिका वाली सख्सियत आपको जन्मजात मिलती है या ये हर किसी इंसान के भीतर होती है। किंतु मेरा निजी और जितना मैंने लोगों का आंकलन किया है,ये आपको किसी वरदान स्वरूप या अभिशाप स्वरूप में मिलती है।      वरदान स्वरूप में मेरा आंकलन और मेरा अनुभव कम या यों कहो की बमुश्किल ही रहा है।पर हाँ! भविष्य में इसके आसार काफी प्रबल है।अभिशाप स्वरूप में मैंने काफी कुछ सीखा और समझा है, आप घर वालों के लिए कुछ और,और बाहर वालों के लिए कुछ और होते है।मैं निजी जिंदगी में गंभीर तो नहीं पर हाँ सोच विचार करने वाला हूं। जैसे कि किसी काम को करने के प्रत्यक्ष प्रमाण,आगामी परिणाम और संभावित परिणाम क्या होंगे/हो सकते है,सोच के चलता हूं। किंतु मेरे घर और दोस्तों या बाहर वालों के मध्य व्यहार है वो कु
-अनकहे अल्फाज- अक्सर कई दफा सोचा है। मैं जो हूँ, सही हूँ , सच हूँ ... पर! कई लोग मुझे सच-झूट गलत-सही ... और न जाने क्या क्या समझा रहे है? मैं एक बात कहूँ ,तो गलत साबित हो उनकी हर बात सच साबित होने में चंद समय लगे। अक्सर "मैं" मैं ही में कही गुम सा रहता हूँ। लोग इसको भी जज करने लगे है। उनको ये मेरी गुमानी, उनकी हार नज़र आती है। पर! सच कहूँ तो मुझे भी पता है गलत और सही क्या और कौन है? पर उस हकीकत की न मेरा दिल इसकी गवाही देता है।  न मेरा जमीर इसकी हिमाकत करता है..... D.s.bangari    
मैं चाहता हूँ के वो मुस्कुराये तो=== मुझे #Notification आएं।।। बेफीजुली ख़याल 
15 साल तक सच के लिए लगातार लड़ाई,उन लोगों से जिन्होंने ये सब कुकर्म किया।उस लोकतंत्र से, उस कानून से जो आज दोषियों को सजा देने के काम कम बल्कि पैसे और रसूखदार लोगों के कहे अनुसार खरीदा बेचा जाता है और उनके मनमुताबिक काम आता है। पर राम रहीम बलात्कार के पूरे वाक्या में एक बात जो पूरे मन व दिमाग को लगातार कचोड़ती रही है कि कहाँ गए वो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ वाले, पक्ष विपक्ष, नेता, अभिनेता, कारोबारी जो इस देश में महिलाओं के सम्मान उनके हक और उनके अधिकारों की बातें करते है। क्या ये सब पगलाये लोग वही है जो दामिनी और दामनी जैसी पीड़ितों के लिए अनसन, कैंडल मार्च,धरना सब करती है।जो तब फाँसी की माँग करते है और अभी उसी बलात्कारी वहसी को बचाने के लिए ये सब। वैसे तो अक्षय कुमार,अनुपम खैर, सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, उमा भारती, नरेंद्र दामोदर मोदी, सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी,प्रियंका वाड्रा, मेनका गाँधी,अरुन जेटली............ ये जितने भी लोग है हमेशा महिलाओं के सम्मान और अधिकारो की बात करते है।आज कहाँ गया इनका सम्मान का ढोकरा और कहाँ गया इनका जमीर?अभी तक तो किसी भी पार्टी के नेता या अभिनेता  ने एक भी बय