वजूद की, तलब ना कर। हक है तेरा, रूह तक,सफर तो कर....।
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Showing posts from October, 2017
समझदारी
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ख़ून अपना हो या पराया हो नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में अमने आलम का ख़ून है आख़िर बम घरों पर गिरें कि सरहद पर रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है खेत अपने जलें या औरों के ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है टैंक आगे बढें कि पीछे हटें कोख धरती की बाँझ होती है फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग जिंदगी मय्यतों पे रोती है इसलिए ऐ शरीफ इंसानो जंग टलती रहे तो बेहतर है आप और हम सभी के आँगन में शमा जलती रहे तो बेहतर है।
चलो ......
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चलो, यादों के साथ टहलने चले चलो, पलकों के साथ झपकने चले चलो, ख़्वाबों के साथ सोने चले चलो, फूलों के साथ महकने चले चलो, कंगन के साथ खनकने चले चलो, गीतो के साथ गुनगुनाने चले चलो, कहानियों के साथ कुछ सुनने,सुनाने चले चलो, क़लम के साथ लिखने,लिखाने चले चलो, किसी ग़ैर को अपनाने चले चलो, अब हम और तुम मिलने चले चलो, यादों के साथ टहलने चले
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---बिखरा-सा-ख़्याल--- शाम का सूरज जब अपनी लालिमा बिखेर रहा हो। उस गुन गुनी धूप में तुमको देखना तुम्हारी बातों,आदतों और शरारतों सबको नोटिस करके तुमको निहारना अच्छा लगता है। इस अच्छे लगने न लगने को अगर प्यार की संज्ञा देना प्यार है। हाँ!कुछ दिनों से मैं प्यार में हूँ! हाँ!कुछ दिनों से मेरी नींद में अक्सर तुम्हारा आना जाना लगा सा रहता है। बात बेबात पर तुमको महसूस करना भी सीख रहा हूँ। पर! इन सबके बीच न जाने क्यों? एक बात का डर हमेशा बना रहता है। तुमको खोने का डर ये इकलौता डर जिसका सामना करने से, "मैं खुद डरता हूँ।" बस ये डर जो मुझे तुमसे दूर ले जाए। इसे हकीकत में तब्दील मत होने देना.....।।
आस
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खुल जाए दरों दीवार आज कुछ ऐसा हो दिख जायें सारे राज़ आज कुछ ऐसा हो तकिये के अंदर सूखा पड़े हुकूमत ज़ुल्फ़ों की सर चढ़े वो आके बाहों में भर जाए आज कुछ ऐसा हो बंद किताबों के सूखे गुलाब मैखाने की नई शराब वो यूँ लिपट के बदहवास हो जाये आज कुछ ऐसा हो तस्वीर निकल के आंखों की अरमानों के साथ उन आहों की बहती नदियों को एक धार मिल जाये आज कुछ ऐसा हो खुल जाए दरों दीवार आज कुछ ऐसा हो दिख जायें राज़ सारे आज कुछ ऐसा हो