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#आने वाले दिन# काफी वक्त बीत गया बिना लिखे,तो सोचा फिर कुछ लिखा जाए।कलम को चलाया तो नीली स्याही अब खत्म हो चुकी थी। फ़ौरन दौरा किया दुकान का, (अमूमन जैसे किसी बड़ी घटना के बाद राजनेताओं के उस घटना स्थल पर।) दुकान में स्याही नहीं थी। कारण पूछा-तो दुकानदार साहब बोले कि सारी स्याही तो ले गए खादी धारी लोग। फिर कुछ गुड़मुड़ा कर बोले कि इतिहास तो अब वही लिखेंगे।कई और दुकानों की खाक छानी कुछ हासिल नहीं हुआ। मुझे लिखना था।तो आव देखा न ताव फ़ौरन अखबार के दफ्तर का रुख किया। इस आस में की भला उनके पास स्याही की क्या कमी नीली नही तो काली ही सही? दफ्तर शानदार........। फ़ौरन पूछा एक महोदय से स्याही मिल जाएगी थोड़ा बहुत। बड़े भौचक्के होकर मेरी तरफ देखा बोले बाहर से आये है क्या इंडिया में। रुककर बोले-आलाकमान से पहले लेटर में लिखवा के लेके आयो। मैंने पूछा-क्यों? तो बोले स्याही सरकार के पास है,हम तो बस छापते है फिर थोड़ा चुप हो गए..... ( तो मेरे दिमाग में जवाब आया छापते होंगे-नोट) रुक कर देर से जवाब आया "खबर"। फिर बोले-अब सरकार तय करती है,कब,कहाँ,कितनी स्याही लगेगी? दबी आवाज में ब
#सपने# सपने अगर कहानियों से है,तो उन्हें बुनो। उन्हें हर बात से जोड़ के देखो,जो उसे मजेदार बनाये।ठीक उसी तरह जिस तरह कहानियों में अलग-अलग किरदार होते है।जो उस कहानी की मिठास,उसकी करयोसिटी,सस्पेन्स सब बनाये रखती है। जब कभी सपने बुनो तो एक बात हमेशा याद रखना।सपने वो बुनना जो........जो तुम्हारे अकेले के लिए न हो। वो उन सब लोगों के लिए हो,जो तुमको चाहते है, जिनके लिए तुम अजीज हो। उन्हें उन सपनों में इस कदर संजोये रखना। जिस कदर पूस की रात मे जबरा, जिस कदर पंच लाइट में पेट्रोमेक्स, देवदास में चंद्र मुखी, जैसे जंगल बुक में बघीरा, जिनके बिना कहानी अपने सारे किरदार के होने के बावजूद खाली सी लगती है। सपने बुनने और टूटने का दौर हमेशा चलता रहता है। तो...... सपने बुनना हमेशा जारी रखिये क्योंकि एक सपने ही तो है,जो जिंदगी की तरह खत्म नहीं होते,बल्कि टूटने और पूरी तरीके से खत्म होने के बावजूद एक नये सपने का बीज डाल जाते है।ताकि वो सपना पेड़ में तब्दील हो सके। सपने देखते रहिये..... लगातार। -durga singh banagri
#कुछ लफ्ज़  बात बस इतनी सी है।  कि तुम्हारा मेरी जिंदगी से जाना किसी  बेसबब मौत से कम नहीं था।  खुशी इस बात की है,  वो पल जो हमने साथ बिताए थे ।  तुम उनकी गठरी मेरे पास ही भूल आयी हो।  तुम कुछ दिनों की मेहमान बन कर आयी तो थी  मेरी जिंदगी में "बेशक"खाली हाथ  पर जाने से पहले, एक उम्र की यादें देकर गयी हो  बस फर्क नहीं कर पा रहा हूँ मैं  तुम्हें बेवफा कहूँ, दरियादिल।  D.s.banagri 
#सहमा-इश्क दरोगा सा रौब है,उसका मेरी यादों पर। मैं मुजरिम सा,हर वक़्त सहमा रहता हूँ। d.s.bangari 
#अकेलापन कमी महसूस होती है। मुझे उस वक़्त तुम्हारी जब मैं अकेला खुद से तन्हा मिलता हूँ तुम्हारी बक-बक का इतना आदी हो चुका हूँ कि ये वक़्त, ये खाली कमरा, ये सपने, ये रूह, बस अब तुम्हारी तलबगार है। और उस इंतजार में जो कभी खत्म नहीं होगा। क्योंकी सुना है!जब रूह साथ छोड़ दें, तो ज़िस्म बेजान लाश है। और "लाश"बात नहीं करती। d.s.bangari 
गिटार और ग़ज़ल में ज्यादा फर्क नहीं, आखरी फैसला तुम्हारा है। तुम एक मुकम्मल ग़ज़ल बनना चाहती हो या चंद रोज गिटार की धुन। (chackout my writing ....) (https://yq.app.link/FcKsBIB4LQ) .....Durga bangari 
हर स्त्री, पुरुष के साथ बराबरी चाहती है, मगर इस शर्त के साथ कि चूहे, छिपकली और कॉकरोच के साथ पुरुष अकेले ही निपटेगा.