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Showing posts from November, 2017

खोज....

अंधों की बस्ती में आईने की दुकान ढूंढ रहा हूं। मैं इंसानों में आजकल इंसान ढूंढ रहा हूं। अमन शांति भाईचारा यह सब सुना तो बहुत है। कहीं देख भी पाउ बस ऐसा एक जहान ढूंढ रहा हूं। पागल हूं जो सोचता हूं, कि पीतल भी सोना हो जाएगा। बेईमानों की बस्ती में इमान ढूंढ रहा हूं। जहर बहुत घोला है शब्दों ने हवाओं में। बस जुबा मीठी कर दे ऐसे पकवान ढूंढ रहा हूं। दिल्लगी ना सही बस दिल को ही लग जाए। उस हसीन चेहरे की एक मुस्कान ढूंढ रहा हूं। आजाद तो है फिर भी गुलामी सी लगती है। वह सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान ढूंढ रहा हूं।

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...गहरे कोहरे सा इश्क़ है मेरा ! तुझ से आगे कुछ दिखता ही नहीं...!!

हसीन यादें

मेरी शायरी में जब भी कोई,उसका अल्फाज आता है। कलम तो कलम,किताब का पन्ना पन्ना तक इतराता है।।

फिदरत

हर गलती पर "पर्दा" सिर्फ,"रब" ही डाल सकता हैं। "इंसान" की जात तो सिर्फ "उछालना" जानती हैं।।

Senti....

मैंने चुना था साझा सवेरा, हम दोनों के लिए.. मैंने नहीं चुनी कभी ये तन्हा रातें; जो मेरी हैं, सिर्फ़ मेरी !

आह ....मोहब्बत

मज़हब, दौलत, ज़ात, घराना, सरहद, गैरत, खुद्दारी, एक मुहब्बत की चादर को, कितने चूहे कुतर गए।।

ख्वाहिश

ख्वाहिश थी, वोह मुझे याद करें अपना समझकर,। ख्वाहिश ही तो थी,बस ख्वाहिश बन कर रह गई।।

नशा

​​ठुकराओ या अब के प्यार करो​, मैं नशे में हूँ​.. ​जो चाहो मेरे यार करो​, ​मैं नशे में हूँ.. ​अब भी दिला रहा हूँ यकीन-ऐ-वफ़ा मगर​, ​मेरा ना एतबार करो​, ​मैं नशे में हूँ.. ​गिरने दो तुम मुझे, मेरा साग़र संभाल लो​, ​इतना तो मेरे यार करो​, ​मैं नशे में हूँ.. ​मुझको कदम-कदम पे भटकने दो वाइज़ों​, ​तुम अपना कारोबार करो,​ ​मैं नशे में हूँ.. ​फ़िर बेखुदी में हद से गुज़रने लगा हूँ मैं​, ​इतना ना मुझसे प्यार करो,​ ​मैं नशे में हूँ।।

इतवार

इतवार में भी कुछ यूँ हो गयी है मिलावट। छुट्टी तो दिखती है,पर सुकून नजर नहीं आता।।

साया

शाम आयी और आकर मुझको तनहा कर गयी कम से कम दिन था,तो मेरे साथ एक साया तो था ।

कुछ-कुछ

कुछ दबी हुई ख़्वाहिशें है, कुछ मंद मुस्कुराहटें.... कुछ खोए हुए सपने है, कुछ अनसुनी आहटें.... कुछ दर्द भरे लम्हे है, कुछ सुकून भरे लम्हात..... कुछ थमें हुए तूफ़ाँ हैं, कुछ मद्धम सी बरसात..... कुछ अनकहे अल्फ़ाज़ हैं, कुछ नासमझ इशारे..... कुछ ऐसे मंझधार हैं, जिनके मिलते नहीं किनारे.... कुछ उलझनें है राहों में, कुछ कोशिशें बेहिसाब.... बस यही ज़िन्दगी है!!
कभी बैठूंगा फुर्सत से,गमे हिसाब करने को। अभी मसरूफ हूं मैं, खुद को बेहाल करने को।।
मुझ पर अब जहर असर नहीं करता, मैंने! यार का लहेजा चखा है।।