अनकहे-जज़्बात

--अनकहे-जज़्बात--

सुन!
सुन रही है,ना।

आज भी तेरे जैसा कोई और कहाँ ढूढ़ पाया हूँ?
न तेरी जैसी बातें कोई करता है
न ही कोई और बिन बातों के बेवजह,
इतने तारीफों के पुल बाँध सकता है।

हर छोटी-बड़ी बात पर दिखावटी और असल गुस्सा 
कहाँ कोई इतने सटीक ढंग से कर पाता है?
तेरा सानी और कोई नहीं शायद!

हाँ!
अब कुछ मिल रहे है। 
पर,
उनमें भी बेवफाई तेरी जैसी कहाँ।

       ----D.s.bangari

Comments

Popular posts from this blog