एक टीचर ऐसा भी---
हमारे एक टीचर हुआ करते थे।नाम उनका बड़ा सही है- मोहन मिश्रा .....मैंटिलिटि में बिल्कुल कुंठित, कबाड़ा(कबाड़ शब्द के पीछे एक वजह है उनका मानना था कि अगर किसी के पेरेंट्स कॉलेज में होने वाले किसी भी मामले के खिलाफ किसी भी तरह की बत्तमीजी /आवाज उठाते है। तो उसका बदला उसके बच्चे से निकाल जाय ...ये किस तरह निकाला जाए इसकी भी एक ट्रिक थी हांलाकि ये कभी फिर विस्तार में बताऊँगा....)।हुआ यूं कि मुझे क्लास 5th से चस्का लगा।कविता,कहानी और हिंदी फिल्मों के गानों को याद करने का शौक। इस शौक के चलते मैंने अपनी कई सब्जेक्ट की कापियों के पीछे पेंसिल से कई बॉलीवुड और इंग्लिश सांग के बोल लिखे थे। अमूमन जैसे कि गवर्नमेंट स्कूल के हालत होते थे/है। कुछ उसी तरह मेरे भी स्कूल के हालात हुआ करते थे।(अब तो खैर और भी बत्तर है)। तो बात तो गोल-गोल न घुमाते हुए सीधे पॉइन्ट पे बात करे तो कॉपियां हफ्ते में एक बार चैक करने के लिए इकट्ठी हुई और मेरी उस इंग्लिश वाली कॉपी के पीछे भी एक बॉलीवुड सांग के अल्फाज लिखे थे।फिर क्या था.(जहाँ तक मैं याद करूँ,तो वो गाना था।"सूरज हुआ मध्म चाँद ...हाँ कुछ ऐसा ही था)।हमारे पूजनीय गुरु जी पूरे कॉलेज में ये ढिंढोरा पिटवाने में तनिक भी देर नहीं लगाई कि मैं भी कॉलेज के उन्हीं बिगड़े लड़कों में आता हूँ।जो लड़कियों को तंज कसते है और उनका पीछा करते हुए आशिकान शायरी बोलते चलते है।बात यही पर ख़त्म नहीं हुई बात और बढ़ी और पूरे कॉलेज के स्टॉफ को मेरी कॉपी को इतनी जोरों-सोरो परोसी और दिखाई गई कि जैसे कोई अल्लादीन का चिराग ढूढ़ निकाला हो।फ़िर होना क्या था मुझे कुछ दिनों तक टीचरों के हैय नजरों का शिकार होना। हांलाकि हफ्ते दो हफ्ते में बात आई गयी हो गयी।पर जैसा में सालों से सुनता आया हूँ कि टीचर को छात्र के हर गुण और अवगुण को पहचान लेता है।तो क्या उनको मेरा लिखने के प्रति रुझान नजर नहीं आया।क्या उनको ढ़िढोरा पीटने से पहले एक बार मुझसे पूछना नहीं चाहिए था... कि क्यों लिखा ये सब।
और हाँ! ये बता दूँ इस सब कांड के बाद मैं सर के घर माफी मांगने गया था। माँफी भी कुछ इस अंदाज में दी गई जैसे कि किसी का खून कर दिया हो।
(हालांकि जिस गवर्नमेंट स्कूल की मैं बात कर रहा हूँ वहाँ टीचर के नाम पर खानापूर्ति करने वाले टीचर और भी है.....और सुना है।दो टीचर ने तो सरकारी दामाद योजना का फॉर्म भी भर लिया है और अभी सरकारी दामाद पेंशन योजना का लाभ उठा रहे है। चलो खाना पूर्ति के लिए हम भी हैप्पी टीचर्स डे कह ही देते है)।
हमारे एक टीचर हुआ करते थे।नाम उनका बड़ा सही है- मोहन मिश्रा .....मैंटिलिटि में बिल्कुल कुंठित, कबाड़ा(कबाड़ शब्द के पीछे एक वजह है उनका मानना था कि अगर किसी के पेरेंट्स कॉलेज में होने वाले किसी भी मामले के खिलाफ किसी भी तरह की बत्तमीजी /आवाज उठाते है। तो उसका बदला उसके बच्चे से निकाल जाय ...ये किस तरह निकाला जाए इसकी भी एक ट्रिक थी हांलाकि ये कभी फिर विस्तार में बताऊँगा....)।हुआ यूं कि मुझे क्लास 5th से चस्का लगा।कविता,कहानी और हिंदी फिल्मों के गानों को याद करने का शौक। इस शौक के चलते मैंने अपनी कई सब्जेक्ट की कापियों के पीछे पेंसिल से कई बॉलीवुड और इंग्लिश सांग के बोल लिखे थे। अमूमन जैसे कि गवर्नमेंट स्कूल के हालत होते थे/है। कुछ उसी तरह मेरे भी स्कूल के हालात हुआ करते थे।(अब तो खैर और भी बत्तर है)। तो बात तो गोल-गोल न घुमाते हुए सीधे पॉइन्ट पे बात करे तो कॉपियां हफ्ते में एक बार चैक करने के लिए इकट्ठी हुई और मेरी उस इंग्लिश वाली कॉपी के पीछे भी एक बॉलीवुड सांग के अल्फाज लिखे थे।फिर क्या था.(जहाँ तक मैं याद करूँ,तो वो गाना था।"सूरज हुआ मध्म चाँद ...हाँ कुछ ऐसा ही था)।हमारे पूजनीय गुरु जी पूरे कॉलेज में ये ढिंढोरा पिटवाने में तनिक भी देर नहीं लगाई कि मैं भी कॉलेज के उन्हीं बिगड़े लड़कों में आता हूँ।जो लड़कियों को तंज कसते है और उनका पीछा करते हुए आशिकान शायरी बोलते चलते है।बात यही पर ख़त्म नहीं हुई बात और बढ़ी और पूरे कॉलेज के स्टॉफ को मेरी कॉपी को इतनी जोरों-सोरो परोसी और दिखाई गई कि जैसे कोई अल्लादीन का चिराग ढूढ़ निकाला हो।फ़िर होना क्या था मुझे कुछ दिनों तक टीचरों के हैय नजरों का शिकार होना। हांलाकि हफ्ते दो हफ्ते में बात आई गयी हो गयी।पर जैसा में सालों से सुनता आया हूँ कि टीचर को छात्र के हर गुण और अवगुण को पहचान लेता है।तो क्या उनको मेरा लिखने के प्रति रुझान नजर नहीं आया।क्या उनको ढ़िढोरा पीटने से पहले एक बार मुझसे पूछना नहीं चाहिए था... कि क्यों लिखा ये सब।
और हाँ! ये बता दूँ इस सब कांड के बाद मैं सर के घर माफी मांगने गया था। माँफी भी कुछ इस अंदाज में दी गई जैसे कि किसी का खून कर दिया हो।
(हालांकि जिस गवर्नमेंट स्कूल की मैं बात कर रहा हूँ वहाँ टीचर के नाम पर खानापूर्ति करने वाले टीचर और भी है.....और सुना है।दो टीचर ने तो सरकारी दामाद योजना का फॉर्म भी भर लिया है और अभी सरकारी दामाद पेंशन योजना का लाभ उठा रहे है। चलो खाना पूर्ति के लिए हम भी हैप्पी टीचर्स डे कह ही देते है)।
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