--बचपन और बस्ता--
खिड़की के पास
एक मासूम चेहरा हर रोज नजर आता है,
कंधे अमूमन झुके हुए,
आखों में
चेहरे की तरह मासूमियत से भरे सपने।
थका सा बदन,
कुछ इस तरह एक बोझ के नीचे दबा हुआ पूरा जिस्म,
जैसे मजदूर का बोझ,
जो जी तोड़ मेहनत करके किसी तरह परिवार पाल रहा हो।
इस उम्र में किस तरह लद के जा रहा है,बचपन
पूछताज करने पर पता चला,
ये बोझ आने वाले कल की तैयारी है।
जो आज के बचपन पे लदी पड़ी है
बोझ,
अकांशा,
और
अरमानों का ये पिटारा,
जिसे लोग बस्ता(स्कूल बैग) कहते है।
--D.s.bangari
खिड़की के पास
एक मासूम चेहरा हर रोज नजर आता है,
कंधे अमूमन झुके हुए,
आखों में
चेहरे की तरह मासूमियत से भरे सपने।
थका सा बदन,
कुछ इस तरह एक बोझ के नीचे दबा हुआ पूरा जिस्म,
जैसे मजदूर का बोझ,
जो जी तोड़ मेहनत करके किसी तरह परिवार पाल रहा हो।
इस उम्र में किस तरह लद के जा रहा है,बचपन
पूछताज करने पर पता चला,
ये बोझ आने वाले कल की तैयारी है।
जो आज के बचपन पे लदी पड़ी है
बोझ,
अकांशा,
और
अरमानों का ये पिटारा,
जिसे लोग बस्ता(स्कूल बैग) कहते है।
--D.s.bangari
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