आस

खुल जाए दरों दीवार आज कुछ ऐसा हो
दिख जायें सारे राज़
आज कुछ ऐसा हो
तकिये के अंदर सूखा पड़े
हुकूमत ज़ुल्फ़ों की सर चढ़े
वो आके बाहों में भर जाए आज कुछ ऐसा हो
बंद किताबों के सूखे गुलाब 
मैखाने की नई शराब
वो यूँ लिपट के बदहवास हो जाये 
आज कुछ ऐसा हो
तस्वीर निकल के आंखों की
अरमानों के साथ उन आहों की
बहती नदियों को एक धार मिल जाये
आज कुछ ऐसा हो
खुल जाए दरों दीवार आज कुछ ऐसा हो
दिख जायें राज़ सारे
आज कुछ ऐसा हो

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