---बिखरा-सा-ख़्याल---
शाम का सूरज
जब अपनी लालिमा बिखेर रहा हो।
उस गुन गुनी धूप में तुमको देखना
तुम्हारी बातों,आदतों और शरारतों
सबको नोटिस करके तुमको निहारना अच्छा लगता है।
इस अच्छे लगने न लगने को
अगर प्यार की संज्ञा देना प्यार है।
हाँ!कुछ दिनों से मैं प्यार में हूँ!
हाँ!कुछ दिनों से मेरी नींद में
अक्सर तुम्हारा आना जाना लगा सा रहता है।
बात बेबात पर
तुमको महसूस करना भी सीख रहा हूँ।
पर!
इन सबके बीच न जाने क्यों?
एक बात का डर हमेशा बना रहता है।
तुमको खोने का डर
ये इकलौता डर जिसका सामना करने से,
"मैं खुद डरता हूँ।"
बस ये डर जो मुझे तुमसे दूर ले जाए।
इसे हकीकत में तब्दील मत होने देना.....।।
शाम का सूरज
जब अपनी लालिमा बिखेर रहा हो।
उस गुन गुनी धूप में तुमको देखना
तुम्हारी बातों,आदतों और शरारतों
सबको नोटिस करके तुमको निहारना अच्छा लगता है।
इस अच्छे लगने न लगने को
अगर प्यार की संज्ञा देना प्यार है।
हाँ!कुछ दिनों से मैं प्यार में हूँ!
हाँ!कुछ दिनों से मेरी नींद में
अक्सर तुम्हारा आना जाना लगा सा रहता है।
बात बेबात पर
तुमको महसूस करना भी सीख रहा हूँ।
पर!
इन सबके बीच न जाने क्यों?
एक बात का डर हमेशा बना रहता है।
तुमको खोने का डर
ये इकलौता डर जिसका सामना करने से,
"मैं खुद डरता हूँ।"
बस ये डर जो मुझे तुमसे दूर ले जाए।
इसे हकीकत में तब्दील मत होने देना.....।।
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