खोज....

अंधों की बस्ती में आईने की दुकान ढूंढ रहा हूं।
मैं इंसानों में आजकल इंसान ढूंढ रहा हूं।

अमन शांति भाईचारा यह सब सुना तो बहुत है।
कहीं देख भी पाउ बस ऐसा एक जहान ढूंढ रहा हूं।

पागल हूं जो सोचता हूं, कि पीतल भी सोना हो जाएगा।
बेईमानों की बस्ती में इमान ढूंढ रहा हूं।

जहर बहुत घोला है शब्दों ने हवाओं में।
बस जुबा मीठी कर दे ऐसे पकवान ढूंढ रहा हूं।

दिल्लगी ना सही बस दिल को ही लग जाए।
उस हसीन चेहरे की एक मुस्कान ढूंढ रहा हूं।

आजाद तो है फिर भी गुलामी सी लगती है।
वह सोने की चिड़िया वाला हिंदुस्तान ढूंढ रहा हूं।

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