-अनकहे अल्फाज-


अक्सर कई दफा सोचा है।
मैं जो हूँ, सही हूँ ,
सच हूँ ...
पर! कई लोग मुझे सच-झूट
गलत-सही ...
और न जाने क्या क्या
समझा रहे है?

मैं एक बात कहूँ ,तो गलत साबित हो
उनकी हर बात सच साबित होने में चंद समय लगे।

अक्सर "मैं"
मैं ही में कही गुम सा रहता हूँ।
लोग इसको भी जज करने लगे है।
उनको ये मेरी गुमानी,
उनकी हार नज़र आती है।
पर! सच कहूँ तो
मुझे भी पता है
गलत और सही क्या और कौन है?
पर उस हकीकत की
न मेरा दिल इसकी गवाही देता है।  न मेरा जमीर इसकी हिमाकत करता है.....
D.s.bangari
   

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