खुद की कही.......

मन किसका कब कैसे किस तरह रियेक्ट ये कह तब तक मुश्किल जब तक आप सामने वाले के मूड को सही तरह न जानते हो क्यों कि अक्सर मैंने निजी जिंदगी में ये महसूस किया है की चीजी जैसी दिखती है वैसी होती नही है। कई इंसान इकलौती जिंदगी में दोहरी जिंदगी जीते है। जैसे की मैं खुद दोहरी जिंदगी जीता हूँ।ऐसा नहीं है कि ये दोहरी भूमिका वाली सख्सियत आपको जन्मजात मिलती है या ये हर किसी इंसान के भीतर होती है। किंतु मेरा निजी और जितना मैंने लोगों का आंकलन किया है,ये आपको किसी वरदान स्वरूप या अभिशाप स्वरूप में मिलती है।
     वरदान स्वरूप में मेरा आंकलन और मेरा अनुभव कम या यों कहो की बमुश्किल ही रहा है।पर हाँ! भविष्य में इसके आसार काफी प्रबल है।अभिशाप स्वरूप में मैंने काफी कुछ सीखा और समझा है, आप घर वालों के लिए कुछ और,और बाहर वालों के लिए कुछ और होते है।मैं निजी जिंदगी में गंभीर तो नहीं पर हाँ सोच विचार करने वाला हूं। जैसे कि किसी काम को करने के प्रत्यक्ष प्रमाण,आगामी परिणाम और संभावित परिणाम क्या होंगे/हो सकते है,सोच के चलता हूं। किंतु मेरे घर और दोस्तों या बाहर वालों के मध्य व्यहार है वो कुछ मस्तिबाज,मस्तमौला, बिना आगे पीछे जाने कोई भी काम कर लेने वाला,फूल टाइम हैप्पी वाला है उनकी नजर में मेरे लिए गम और खुशी एक ही अवस्था है।मुझे किसी के आने जाने का गम नहीं होता ये उनका नज़रिया कहता है। और कई बार मुझे अपनी ये वाली सख्सियत सही लगती है, पर इंसान कब तक खुद से झूठ बोल सकता है, मूल रूप से वैसा ही होना और उसके जैसा बनने में बड़ा फर्क है,इनके बीच एक खाई है बहुत कम लोग ही उस खाई को पाट पाने में सफल हो पाते है, मैं अग्रसर जरूर हूँ किंतु उस परम गति को अभी हासिल करने में काफी समय है।

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