---तारीफ-ए-हकीकत---

---तारीफ-ए-हकीकत---


तेरे चेहरे के दीदार से दिन बन  जाता है,
तेरी जुल्फें सावन के बादलों की तरह,
अपनी बौछारो से मुझे पूरा तर कर जाती है।
मदहोश नज़रों की बात न करूँ,
तो ये तेरे हुस्न की तौहीन होगी।
तेज कटारी की तरह पूरे जिस्म को ,
कुछ इस कदर उधेड़तीं है 
जैसे ईद का बकरा हो।

ये सुर्ख होंठ, 
जिनको अक्सर तुम चटक लाल रंग में रंगती हो,
मेरे लिये रेगिस्तान में मरीचिका जैसा होता है।
दिखता तो है पर,
नसीब में नहीं।

खैर!
तेरी तारीफ में 
जिस्म के कुछ बनावट को उकेरा है।
वक़्त नसीब हुआ तो,
तेरे हुस्न को शब्दों में इस कदर उकेरुँगा,
जैसे शाहजहाँ ने ताजमहल।
....
..जो सदियों तक कोई ना कर पाये।


            ---D.s.bangari

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