°°°कभी-कभी°°°
कभी ये वहम की,
वो मेरा हैं सिर्फ मेरा।
कभी ये डर की,
वो मुझसे जुदा तो नहीं।
कभी ये दुआ की ,
उसे मिल जाये सारे जहाँ की खुशियाँ।
कभी ये ख़ौफ की,
वो खुश मेरे बिना तो नहीं।
कभी ये तम्मन्ना की,
बस जाऊँ उसकी निगाह में।
कभी ये डर की,
उसकी आँखों को किसी ने देखा तो नहीं।
कभी ये ख़्वाहिश की,
जमाना करे तारिफ़ उसकी।
कभी ये वहम की,
वो किसी से मिला तो नहीं।
कभी ये आरजू की,
वो जो माँगे मिल जाये उसे।
कभी ये सोच की उसने मेरे सिवा कुछ माँगा तो नहीं।।
कभी ये वहम की,
वो मेरा हैं सिर्फ मेरा।
कभी ये डर की,
वो मुझसे जुदा तो नहीं।
कभी ये दुआ की ,
उसे मिल जाये सारे जहाँ की खुशियाँ।
कभी ये ख़ौफ की,
वो खुश मेरे बिना तो नहीं।
कभी ये तम्मन्ना की,
बस जाऊँ उसकी निगाह में।
कभी ये डर की,
उसकी आँखों को किसी ने देखा तो नहीं।
कभी ये ख़्वाहिश की,
जमाना करे तारिफ़ उसकी।
कभी ये वहम की,
वो किसी से मिला तो नहीं।
कभी ये आरजू की,
वो जो माँगे मिल जाये उसे।
कभी ये सोच की उसने मेरे सिवा कुछ माँगा तो नहीं।।
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