एक टीचर ऐसी भी-पार्ट-2
कहानी कहो या अफसाना।
बस कुछ इसी तरह की एक टीचर की कहानी।हांलाकि ये लाइन कुछ इस तरह होती "कि इस तरह की है मेरी टीचर की कहानी" पर ये सिर्फ उनके हक मैं है। जिनको टीचर ने कम से कम एक साल तो पढ़ाया हो। वो कहते है न की-"बंदर की किस्मत और हल्दी की बरबादी"। बस कुछ इसी तरह की अपनी कहानी है जनाब।
खैर! उसे इस प्रसंग में,मैं कुछ शब्दों में सहजने की कोशिश करूँगा।
पर अभी बात कुछ साल 2010-2011 की रही होगी।जहाँ की पहाड़ में आपको प्राकृतिक सुंदरता और खुबसूरत लड़कियाँ देखने को आम तौर मिल ही जाएगी।पर दूर-दूर तक उनको देखने या सुनने से आपको कंगना रनौत वाली फीलिंग कभी नहीं आ सकती हैं।पर हल्द्वानी से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी एक लड़की "गीता रावत"।जिनकी नियुक्ति देश के भविष्य निर्माता अथार्त बच्चों के शिक्षक के रूप .....माफ़ी चाहूँगा,सिर्फ बच्चीयों के निर्माण के लिए।(गर्ल्सस्कूल में कार्यरत)
मुझे पूरी जानकारी तो नहीं,पर शायद यहाँ उनका पहला तबादला था। दिमाग़ से एकदम चतुर,चालक और आँखें ऐसी की हिरनी भी गच्चा खा जाए।बालों की हालत देखते हुए। मैंने और मेरे जैसे कई अनपढ़ और अगूढ़ लोगों ने इस बात पर कई मर्तबा शर्त तक लगाई थी।कि मैगी की जननी और मैगी जैसे दिखने वाली टेढ़ी-मेढ़ी कई सामनों को इन्होंने अपने नाम और बालों के साथ पेटेंट कराया होगा।हालांकि दिमागी ज्ञान और उम्र के साथ इस बात को दिमागी वहम देते हुए सिरे से नकार दिया है।
बात कुछ इस तरह की है कि इंग्लिश में मेरा हाथ और दिमाग दोनों बराबर मात्रा में तंग थे।मुझे इंग्लिश रूपी दैत्य से उबारने के हमारे पिताश्री ने हमें इन मोहतरमा के पास जिनको की दुनियाँ और मैं गीता रावत के नाम से जानते हैं(थे इसलिए नहीं क्योंकि अभी वो इस संसार रूपी मोह माया से मुक्त नहीं हुए और मेरे टच में है।और 3-6 महीने में रो-धो के उनसे बात हो ही जाती है)।
दिमाग से जैसे मैं पहले ही कह चुका हूँ।चतुर,चालक और शातिर थी।तो इन्होंने हमारे पूज्यश्री पिता के बैतरणी पार(इंग्लिश सीखो अभियान) को यूँही स्वीकार नहीं किया। बल्कि पहले इस बात का पूर जोर के साथ खंडन किया कि वो टूयूसन नामक परेशानी से वह दूर रहती है।किंतु हमारे पिताश्री के पुत्र प्रेम के सामने विवश होकर अंततोगत्वा इस सहमति के साथ "कि सीखा तो देंगे,किंतु उससे पहले टूयूसन पढ़ने वाले महारथी का आंकलन किया जाएगा।"
एक परीक्षा के साथ।
तभी यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इंग्लिश सीखो अभियान सुचारू रूप से रखा जाय या नहीं।किन्तु समय के साथ ये bbc super unit test (unsolve paper)नामक बीमारी को लगातार पराजय देते हुए।इंग्लिश सीखो अभियान के प्रथम पड़ाव को पार किया।हांलाकि समय बलवान होता हो न हो किंतु उस समय मेरी किस्मत बलवान जरूर थी।(एक निजी बात ये भी कि कई bbc super unit test पेपर मैंने वापस नहीं किये)।
इंग्लिश सीखो अभियान के तहत मुझे अच्छी भाषा और किताब रूपी ज्ञान प्राप्त हुआ। किन्तु इसमें बाधा रूपी अड़चने तब आई जब कई और मेरी देखा-देखी सखी इस अभियान में मेरी सहभागी बनी।
समय के साथ कुछ सखी कम भी होती चली गयी।इसका मुझे सदा अफसोस रहा इसलिए कि इतनी सखियों के बीच रहते हुए भी राधा कोई न बन सकी,और न मैं किसी का कृष्ण हालांकि साँवला होने के अलावा मुझमें कृष्ण वाली कोई खूबी नहीं थी शायद।
दोबारा रावत जी को समझने के प्रयास में ---
बात उस टाइम की थी जब अखरोट का टाइम था।मैंने स्कूल से लाये कई सारे अखरोट मेम को दान स्वरूप भेंट किये।बदले में मुझे काफी,चाय और खाने का न्योता कई बार मिला।इस स्नेह,प्यार और शिक्षा रूपी कृपा के लिए मैं जीवन भर मेम का आभारी रहूँगा। घर जैसे माहौल मिलने के कारण अब मेरे स्वभाव में भी कुछ परिवर्तन आया जैसे कि अब में कई मर्तबा टूयूसन नामक बला से निजात पा लेता था और मेम को पिताश्री को न बताने का अनुरोध कर दिया करता और ऐसा हो भी जाता था।
इस पूरे टूयूसन घटनाचक्र में अचानक उस दिन बड़ी हलचल मच गई।जब कोई "अपरिचित" नामक असामाजिक प्राणी काफल के साथ-साथ आपत्तिजनक वस्तु तो नहीं..... पर था,कुछ जरूर..... छोड़ गया। और मेम के उस पार्सल रूपी गिफ्ट को देखने के बाद होश फाख्ता हो गए।किन्तु इस क्रांतिकारी घटना के बाद "मैं"उर्फ अपरिचित अथार्त गीता मेम के पास पढ़ने वाला इकलौता छात्र चर्चाओ में आ गया।ये सिलसिला पूरे "आस-पड़ोस" में मुझे इतना मशहूर कर देगा।ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा नहीं था। मुझे जानने के इछुक लोगों की मंडली में अब कुछ और नाम शामिल हो गए जैसे कि गर्ल्स स्कूल की मेम और शायद!मेम के घर वाले भी।
कुछ इसी तरह मेम के साथ इंग्लिश सीखो अभियान चलता रहा और बस फिर बात दुआ सलाम तक ही सीमित रह गई।
आज भी गीता मेम का मेरे प्रति स्नेह और आशिर्वाद रूपी प्रसाद कम नहीं हुआ।अभी भी मैं मेम के टच में बना हूँ।कब तक?ये कहना थोड़ा कठिन है।
happy teacher day mem
.......Durgesh
कहानी कहो या अफसाना।
बस कुछ इसी तरह की एक टीचर की कहानी।हांलाकि ये लाइन कुछ इस तरह होती "कि इस तरह की है मेरी टीचर की कहानी" पर ये सिर्फ उनके हक मैं है। जिनको टीचर ने कम से कम एक साल तो पढ़ाया हो। वो कहते है न की-"बंदर की किस्मत और हल्दी की बरबादी"। बस कुछ इसी तरह की अपनी कहानी है जनाब।
खैर! उसे इस प्रसंग में,मैं कुछ शब्दों में सहजने की कोशिश करूँगा।
पर अभी बात कुछ साल 2010-2011 की रही होगी।जहाँ की पहाड़ में आपको प्राकृतिक सुंदरता और खुबसूरत लड़कियाँ देखने को आम तौर मिल ही जाएगी।पर दूर-दूर तक उनको देखने या सुनने से आपको कंगना रनौत वाली फीलिंग कभी नहीं आ सकती हैं।पर हल्द्वानी से अपनी पढ़ाई पूरी कर चुकी एक लड़की "गीता रावत"।जिनकी नियुक्ति देश के भविष्य निर्माता अथार्त बच्चों के शिक्षक के रूप .....माफ़ी चाहूँगा,सिर्फ बच्चीयों के निर्माण के लिए।(गर्ल्सस्कूल में कार्यरत)
मुझे पूरी जानकारी तो नहीं,पर शायद यहाँ उनका पहला तबादला था। दिमाग़ से एकदम चतुर,चालक और आँखें ऐसी की हिरनी भी गच्चा खा जाए।बालों की हालत देखते हुए। मैंने और मेरे जैसे कई अनपढ़ और अगूढ़ लोगों ने इस बात पर कई मर्तबा शर्त तक लगाई थी।कि मैगी की जननी और मैगी जैसे दिखने वाली टेढ़ी-मेढ़ी कई सामनों को इन्होंने अपने नाम और बालों के साथ पेटेंट कराया होगा।हालांकि दिमागी ज्ञान और उम्र के साथ इस बात को दिमागी वहम देते हुए सिरे से नकार दिया है।
बात कुछ इस तरह की है कि इंग्लिश में मेरा हाथ और दिमाग दोनों बराबर मात्रा में तंग थे।मुझे इंग्लिश रूपी दैत्य से उबारने के हमारे पिताश्री ने हमें इन मोहतरमा के पास जिनको की दुनियाँ और मैं गीता रावत के नाम से जानते हैं(थे इसलिए नहीं क्योंकि अभी वो इस संसार रूपी मोह माया से मुक्त नहीं हुए और मेरे टच में है।और 3-6 महीने में रो-धो के उनसे बात हो ही जाती है)।
दिमाग से जैसे मैं पहले ही कह चुका हूँ।चतुर,चालक और शातिर थी।तो इन्होंने हमारे पूज्यश्री पिता के बैतरणी पार(इंग्लिश सीखो अभियान) को यूँही स्वीकार नहीं किया। बल्कि पहले इस बात का पूर जोर के साथ खंडन किया कि वो टूयूसन नामक परेशानी से वह दूर रहती है।किंतु हमारे पिताश्री के पुत्र प्रेम के सामने विवश होकर अंततोगत्वा इस सहमति के साथ "कि सीखा तो देंगे,किंतु उससे पहले टूयूसन पढ़ने वाले महारथी का आंकलन किया जाएगा।"
एक परीक्षा के साथ।
तभी यह सुनिश्चित किया जाएगा कि इंग्लिश सीखो अभियान सुचारू रूप से रखा जाय या नहीं।किन्तु समय के साथ ये bbc super unit test (unsolve paper)नामक बीमारी को लगातार पराजय देते हुए।इंग्लिश सीखो अभियान के प्रथम पड़ाव को पार किया।हांलाकि समय बलवान होता हो न हो किंतु उस समय मेरी किस्मत बलवान जरूर थी।(एक निजी बात ये भी कि कई bbc super unit test पेपर मैंने वापस नहीं किये)।
इंग्लिश सीखो अभियान के तहत मुझे अच्छी भाषा और किताब रूपी ज्ञान प्राप्त हुआ। किन्तु इसमें बाधा रूपी अड़चने तब आई जब कई और मेरी देखा-देखी सखी इस अभियान में मेरी सहभागी बनी।
समय के साथ कुछ सखी कम भी होती चली गयी।इसका मुझे सदा अफसोस रहा इसलिए कि इतनी सखियों के बीच रहते हुए भी राधा कोई न बन सकी,और न मैं किसी का कृष्ण हालांकि साँवला होने के अलावा मुझमें कृष्ण वाली कोई खूबी नहीं थी शायद।
दोबारा रावत जी को समझने के प्रयास में ---
बात उस टाइम की थी जब अखरोट का टाइम था।मैंने स्कूल से लाये कई सारे अखरोट मेम को दान स्वरूप भेंट किये।बदले में मुझे काफी,चाय और खाने का न्योता कई बार मिला।इस स्नेह,प्यार और शिक्षा रूपी कृपा के लिए मैं जीवन भर मेम का आभारी रहूँगा। घर जैसे माहौल मिलने के कारण अब मेरे स्वभाव में भी कुछ परिवर्तन आया जैसे कि अब में कई मर्तबा टूयूसन नामक बला से निजात पा लेता था और मेम को पिताश्री को न बताने का अनुरोध कर दिया करता और ऐसा हो भी जाता था।
इस पूरे टूयूसन घटनाचक्र में अचानक उस दिन बड़ी हलचल मच गई।जब कोई "अपरिचित" नामक असामाजिक प्राणी काफल के साथ-साथ आपत्तिजनक वस्तु तो नहीं..... पर था,कुछ जरूर..... छोड़ गया। और मेम के उस पार्सल रूपी गिफ्ट को देखने के बाद होश फाख्ता हो गए।किन्तु इस क्रांतिकारी घटना के बाद "मैं"उर्फ अपरिचित अथार्त गीता मेम के पास पढ़ने वाला इकलौता छात्र चर्चाओ में आ गया।ये सिलसिला पूरे "आस-पड़ोस" में मुझे इतना मशहूर कर देगा।ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा नहीं था। मुझे जानने के इछुक लोगों की मंडली में अब कुछ और नाम शामिल हो गए जैसे कि गर्ल्स स्कूल की मेम और शायद!मेम के घर वाले भी।
कुछ इसी तरह मेम के साथ इंग्लिश सीखो अभियान चलता रहा और बस फिर बात दुआ सलाम तक ही सीमित रह गई।
आज भी गीता मेम का मेरे प्रति स्नेह और आशिर्वाद रूपी प्रसाद कम नहीं हुआ।अभी भी मैं मेम के टच में बना हूँ।कब तक?ये कहना थोड़ा कठिन है।
happy teacher day mem
.......Durgesh
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